MoP: सात सालों बाद भी एमओपी पर शीर्ष अदालत-सरकार के बीच नहीं बन पाई आम सहमति
MoP: सात सालों बाद भी एमओपी पर शीर्ष अदालत-सरकार के बीच नहीं बन पाई आम सहमति
एक संसदीय समिति ने इस बात पर 'आश्चर्य' जताया है कि सर्वोच्च अदालत और सरकार, उच्च न्यायपालिका (सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट) में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया ज्ञापन के संशोधन पर आम सहमति बनाने में विफल रहे हैं।

केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच कॉलेजियम प्रक्रिया को लेकर काफी लंबे समय से खींचतान जारी है। इसी बीच, सामने आया है कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट सात सालों के बाद भी कॉलेजियम प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) में संशोधन के लिए आम सहमति नहीं बना पाए हैं। कानून और न्याय और कार्मिक पर विभाग से संबंधित स्थायी संसदीय समिति ने इस पर आश्चर्य जताया है। हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में इस समिति ने उम्मीद जताई है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए सरकार और न्यायपालिका संशोधित एमओपी को अंतिम रूप देगी। 

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाले पैनल ने अपनी रिपोर्ट में हाल ही में उच्च न्यायालयों में जजों की कमी की समस्या से निपटने के लिए कार्यपालिका और न्यायपालिका को अच्छी सोच के साथ काम करने को कहा है। समिति ने इस बात पर 'आश्चर्य' जताया है कि सर्वोच्च अदालत और सरकार, उच्च न्यायपालिका (सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट) में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया ज्ञापन के संशोधन पर आम सहमति बनाने में विफल रहे हैं। जबकि यह मामला लगभग सात वर्षों से दोनों के पास विचाराधीन है।

 

क्या है पूरा मामला

दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को उलटने के लिए सरकार राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक और एक संबंधित संवैधानिक संशोधन लाई थी। इन दोनों को संसद ने लगभग सर्वसम्मति से पारित भी कर दिया था। जिसके बाद सरकार ने 13 अप्रैल, 2015 से NJAC अधिनियम और संविधान संशोधन अधिनियम लागू कर दिया। हालांकि, दोनों कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और शीर्ष अदालत ने 16 अक्टूबर, 2015 को दोनों कानूनों को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद एक बार कॉलेजियम सिस्टम बहाल हो गई।  

 

सुप्रीम कोर्ट ने दिया था निर्देश

बाद में दिसंबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि पात्रता मानदंड, पारदर्शिता, सचिवालय की स्थापना और शिकायतों से निपटने के लिए पूरे तंत्र को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अदालत के कॉलेजियम की सलाह से मौजूदा एमओपी में जरूरी संसोधनों को अंतिम रूप दिया जाए। जिसके बाद से इसे लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के बीच विचार विमर्श चल रहा है। 

संसदीय समिति ने सरकार और न्यायपालिका से संशोधित एमओपी (MoP) को अंतिम रूप देने की उम्मीद की है, जो अधिक कुशल और पारदर्शी है। संसदीय पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कानून मंत्रालय के न्याय विभाग द्वारा साझा किए गए विवरण का हवाला देते हुए कहा कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने प्रस्तावित संशोधित एमओपी पर कई मौकों पर विचारों का आदान-प्रदान किया है। MoP दस्तावेजों का एक संग्रह है जो सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण का मार्गदर्शन करता है।

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