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देश में जनवरी के मुकाबले फरवरी में थोक महंगाई में कमी आई है। सरकार ने बताया कि जनवरी में देश में थोक महंगाई 4.73 फीसदी थी, जो कि फरवरी में घटकर 3.85 फीसदी हो गई है। बता दें कि थोक भाव में किसी सामान का मूल्य थोक महंगाई या फिर थोक मूल्य सूचकांक कहलाता है। थोक मूल्य सूचकांक में सामान काफी मात्रा में एक साथ बेचा जाता है और यह सौदा फर्मों के बीच होता है ना कि ग्राहकों के बीच। देश में महंगाई मापने के लिए थोक मूल्य सूचकांक बेहद अहम होता है।
थोक महंगाई दर में गिरावट का ये है कारण
सरकार की ओर से जारी बयान के अनुसार, फरवरी 2023 में मुद्रास्फीति की दर में गिरावट मुख्य रूप से कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस, गैर-खाद्य वस्तुओं, खाद्य उत्पादों, खनिजों, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक और ऑप्टिकल उत्पादों, रसायन और रासायनिक उत्पादों, विद्युत उपकरणों व मोटर वाहनों, ट्रेलरों और सेमीट्रेलर की कीमतों में गिरावट के कारण आई है। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के ताजा आंकड़े कंपनियों के लिए बेहतर साबित हो सकते हैं क्योंकि थोक मूल्य में गिरावट से कंपनियों की आय पर दबाव कम हो सकता है। कम इनपुट लागत भी खुदरा कीमतों के लिए अच्छा संकेत हो सकती है।
25 महीने के निचले स्तर पर पहुंची थोक महंगाई दर
थोक महंगाई के अलग-अलग क्षेत्रों की बात करें तो निर्माण उत्पादों की कैटेगरी में महंगाई दर 1.94 फीसदी रही जो जनवरी में 2.99 फीसदी थी। सब्जियों के मामले में यह -21.53% रही जो कि जनवरी महीने में -26.48 फीसदी रहा था। अंडा, मटन-मछली के मामले में थोक महंगाई दर 1.49 प्रतिशत रहा, जनवरी महीने में यह 2.23 प्रतिशत रहा था। प्याज के मामले में थोक महंगाई दर घटकर -40.14 फीसदी पर पहुंच गई जो कि जनवरी महीने में -25.20 फीसदी रही थी। सरकार की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार फरवरी महीने में थोक महंगाई दर 25 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गई है। वहीं इस दौरान खाद्य महंगाई 2.95 प्रतिशत से घटकर 2.76% हो गई है।
क्या है डब्ल्यूपीआई और सीपीआई?
सरकार की ओर से जारी बयान के अनुसार, फरवरी 2023 में मुद्रास्फीति की दर में गिरावट मुख्य रूप से कच्चे तेल और WPI उन दो सूचकांकों में से एक है जो भारत में महंगाई को मापते हैं। दूसरा उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति (सीपीआई) है। डब्ल्यूपीआई उत्पादन या विनिर्माण के स्तर पर कीमतों को कैप्चर करता है। यह कंपनियों के बीच जिन वस्तुओं का व्यापार किया जाता है उन्हें ध्यान में रखते हुए महंगाई को मापता है। वहीं दूसरी ओर सीपीआई खुदरा उपभोक्ता स्तर पर कीमतों को मापता है। सीपीआई में ऐसे खाद्य पदार्थों का बड़ा हिस्सा आता है, जो खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ाने के कारक बनते हैं। वहीं डब्ल्यूपीआई विनिर्मित वस्तुओं के आधार पर महंगाई की गणना करता है।
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