राखी का कारोबार 6000 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान, 25 फीसदी तक महंगी हुईं राखियां
राखी का कारोबार 6000 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान, 25 फीसदी तक महंगी हुईं राखियां
राखी व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि कोरोना की वजह से पिछले दो साल राखी कारोबार के लिए ठीक नहीं रहे, लेकिन इस साल कोरोना का डर खत्म होने पर खुदरा कारोबारियों ने खूब राखियां खरीदी हैं।

रक्षाबंधन का त्योहार जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है। वैसे-वैसे देश के प्रमुख बाजारों में रौनक बढ़ने लगी है। कोरोना काल के दो साल बाद इस बार लोगों में रक्षाबंधन को लेकर जबरदस्त उत्साह नजर आ है। पिछले दो साल से लड़खड़या राखी का कारोबार अब इस महामारी से पूरी तरह से उबर चुका है। इस साल व्यापार कोरोना के पहले के मुकाबले बढ़ा हुआ दिख रहा है। हालांकि कच्चा माल महंगा होने से इस साल बाजारों में राखियां महंगी जरूर हैं, लेकिन बिक्री पिछले साल से ज्यादा है। राखी के व्यापार से जुड़े कारोबारियों के मुताबिक, पिछले साल 3,500 से 4,500 करोड़ रुपये की राखियों का करोबार हुआ था। इस वर्ष ये आंकड़ा बढ़कर 5,000 से 6,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। राखी बनाने वालों का कहना है कि कुल लागत करीब 30 फीसदी बढ़ी है, मगर दाम 20 से 25 फीसदी ही बढ़ाए गए हैं। इससे मुनाफा घट गया है।

देश में दिल्ली का सदर बाजार राखी कारोबार का प्रमुख केंद्र है। यहां राखी के व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि कोरोना की वजह से पिछले दो साल राखी कारोबार के लिए ठीक नहीं रहे, लेकिन इस साल कोरोना का डर खत्म होने पर खुदरा कारोबारियों ने खूब राखियां खरीदी हैं। दाम बढ़ने के बावजूद इस बार 30 से 50 फीसदी से ज्यादा राखियां बिकने की उम्मीद है। व्यापारी अनिल जैन ने अमर उजाला को बताया कि शुरुआत में खुदरा कारोबारियों ने इस साल काफी ज्यादा माल खरीदा है। अब खरीद सुस्त पड़ती दिखाई दे रही है। अगर खुदरा कारोबारियों का पूरा माल नहीं बिका तो भुगतान फंसने का डर है।

 

ईविल राखी की मार्केट में खूब है मांग

इस साल बाजार में किस्म-किस्म की राखियां नजर आ रही हैं। ईविल आई यानी नजरबट्टू राखी की खूब मांग है। ये राखियां 10 से 50 रुपये में मिल रही हैं। व्यापारियों का कहना है कि भले ही लागत बढ़ने से राखियां महंगी हों, लेकिन कारोबार पिछले साल की तुलना में 20 से 25 फीसदी बढ़ सकता है। हालांकि इस इस साल राखी निर्माताओं पर बढ़ती लागत का भी बोझ पड़ा है। मोती, धागे, मनके से लेकर पैकेजिंग मैटेरियल तक के दाम काफी बढ़ गए हैं।

 

इन वजह से बढ़े राखियों के दाम

पैकेजिंग वाले बॉक्स के दाम 50 रुपये से बढ़कर 70 रुपये हो गए हैं। राखी की प्रिंटिंग भी 25 फीसदी महंगी हुई है। राखी बनाने में इस्तेमाल होने वाली पन्नी 300 से 400 रुपये से बढ़कर 400 से 450 रुपये में मिल रही है। जिससे राखी की लागत भी 3 से 5 रुपये बढ़ गई है। मोती गुणवत्ता के हिसाब से 300 से 2,500 रुपए किलो मिल रहे हैं। इसकी वजह से राखी के दाम भी बढ़ाने पड़े हैं। पहले एक दर्जन राखियों का जो पैकेट 180 रुपए में बिक रहा था, आज उसकी कीमत 240 रुपये है। राखी बनाने वालों का कहना है कि कुल लागत करीब 30 फीसदी बढ़ी है, लेकिन दाम 20 से 25 फीसदी ही बढ़ाए गए हैं। इससे मुनाफा घट गया है।

 

चीन से आता है कच्चा माल

देश में दिल्ली के अलावा पश्चिम बंगाल भी राखी निर्माण का सबसे बड़ा केंद्र है। देश में कुल कारोबार में 50 से 60 फीसदी हिस्सा बंगाल का है। इसके बाद गुजरात, मुंबई, दिल्ली, राजस्थान में बड़े पैमाने पर राखियां बनती हैं। चीन से सीधे राखी का आयात नहीं होती हैं, लेकिन इसे बनाने में लगने वाला सामान जैसे फैंसी पार्ट, पन्नी, फोम, सजावटी सामान, स्टोन आदि वहीं से आते हैं। राखी बनाने में उपयोग होने वाला 1,000 से 1,200 करोड़ रुपये मूल्य का कच्चा माल चीन से आयात किया जाता है।

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