फुटबॉल वर्ल्ड पर इस बार सबसे ज्यादा एशियाई प्रायोजक कंपनियां, भारत की भी एक कंपनी
फुटबॉल वर्ल्ड पर इस बार सबसे ज्यादा एशियाई प्रायोजक कंपनियां, भारत की भी एक कंपनी
फीफा वर्ल्ड कप का आयोजन 20 साल पहले एशिया में हुआ था। तब जापान और दक्षिण कोरिया ने इसकी मेजबानी की थी। तब टूर्नामेंट को 15 कंपनियों ने स्पॉन्सर किया था। उनमें से सिर्फ छह एशियाई कंपनियां थीं।

फुटबॉल विश्व कप टूर्नामेंट पर इस बार जितनी छाप एशिया की है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। इसकी वजह सिर्फ यह नहीं है कि दुनिया के सबसे आकर्षक खेल टूर्नामेंट की मेजबानी एक एशियाई देश कर रहा है। बल्कि इस बार एशियाई टीमों की मौजूदगी और स्पॉन्सरशिप के मामले में भी एशिया ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है। इसके पहले फीफा वर्ल्ड कप का आयोजन 20 साल पहले एशिया में हुआ था। तब जापान और दक्षिण कोरिया ने इसकी मेजबानी की थी। तब टूर्नामेंट को 15 कंपनियों ने स्पॉन्सर किया था। उनमें से सिर्फ छह एशियाई कंपनियां थीं। ये सभी मेजबान दोनों देशों की थीं।

प्रसारण अधिकारों की बिक्री के बाद स्पॉन्सरशिप ही विश्व फुटबॉल की संचालक संस्था फीफा की आमदनी का सबसे बड़ा स्रोत है। इस बार वर्ल्ड कप के स्पॉन्सरशिप से उसे 1.35 बिलियन डॉलर की रकम मिली है, जो इस वर्ष के उसके बजट का 29 फीसदी है। प्रसारण अधिकारों की बिक्री से उसे 2.64 बिलियन डॉलर की प्राप्ति हुई है।

 

फीफा के स्पॉन्सर्स दो श्रेणी में आते हैं। एक उसके पार्टनर हैं, जिनसे उसका दीर्घकालिक करार रहता है। यानी ये कंपनियों सिर्फ वर्ल्ड कप के दौरान उससे नहीं जुड़तीं। दूसरी श्रेणी में वे कंपनियां आती हैं, जो सिर्फ किसी एक प्रतियोगिता को स्पॉन्सर करती हैँ। यह पहला मौका है, जब भारत की कोई कंपनी फीफा वर्ल्ड कप टूर्नामेंट की स्पॉन्सर बनी। ये कंपनी बायजू है। उधर चीन की चार और सिंगापुर की एक कंपनी भी स्पॉन्सर्स में शामिल हैं। उनके अलावा स्पॉन्सर्स में मेजबान कतर की छह कंपनियां शामिल हैं।

टूर्नामेंट में 32 टीमें भाग ले रही हैं। लेकिन एशियाई स्पॉन्सर्स की बढ़ी मौजूदगी ने सबका ध्यान खींचा है। विशेषज्ञों के मुताबिक ये कंपनियां वर्ल्ड कप जैसे बड़े आयोजन से खुद को जोड़ कर दुनिया भर में मौजूद टीवी/ऑनलाइन दर्शकों तक पहुंचना चाहती हैं। फ्रांस के बिजनेस स्कूल स्केमा में खेल और भू-राजनीतिक अर्थव्यवस्था विषय के प्रोफेसर सिमोन चैडविक ने वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम से कहा- ‘एशियाई बाजार वैसे तो बड़े हैं, लेकिन प्रति व्यक्ति उपभोग के लिहाज से वे दुनिया के अन्य बाजारों जितने आकर्षक नहीं हैं।’

 

पिछले यानी 2018 के वर्ल्ड कप के दौरान फुटबॉल मैचों को सबसे ज्यादा टीवी दर्शक जिन देशों में मिले, उनमें चीन, भारत और इंडोनेशिया शामिल थे। उन मैचों को इन देशों में इसके बावजूद देखा गया कि उनकी अपनी टीमें टूर्नामेंट में नहीं थीं। इसीलिए इस बार एशियाई कंपनियों ने वर्ल्ड कप से जुड़ने में अधिक दिलचस्पी ली है। भारतीय स्पोर्ट्स कंसल्टेंट अरुणवा चौधरी ने बताया- ‘फुटबॉल में एशियाई स्पॉन्सर्स के आगे आने का एक ट्रेंड बन गया है। इसके बावजूद भारत में बायजू के अलावा बहुत कम कंपनियां इसके लिए आगे आ रही हैं।’

चौधरी ने कहा- ‘कंपनियां खेल को अपने संभावित उपभोक्ताओं से जुड़ने के माध्यम के रूप में देखती हैं। इस दौरान आम लोग उनके ब्रांड और उत्पादों से परिचित होते हैं।’ चीनी कंपनियां भी इसीलिए बड़े पैमाने पर आगे आई हैं। 2018 में वर्ल्ड कप को दुनिया भर में मिली दर्शक संख्या का 18 फीसदी हिस्सा चीन में था। इसलिए चीनी कंपनियों ने इस बार अपनी मार्केटिंग के लिए इस मौके का उपयोग किया है।

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