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‘सलाम वेंकी’ कुछ अलग सोचने वाले तीन फिल्म निर्माताओं की साहसिक कोशिश है। सूरज सिंह हिंदी फिल्म जगत में अरसे से सक्रिय रहे हैं। फिल्म निर्माता के तौर पर उनके साथ श्रद्धा और वर्षा ने एक ऐसी कहानी पर फिल्म बनाने का प्रयास किया है, जिसमें एक कालजयी फिल्म बनने के सारे तत्व मौजूद हैं। निर्देशक के तौर पर रेवती भी काफी प्रभावशाली काम करती रही हैं लिहाजा ये फिल्म देखने का पहला बड़ा कारण वह ही बनती है। काजोल ने अपनी सेकेंड इनिंग्स में उन किरदारों को प्राथमिकता देनी शुरू की है, जिनमें उनका अब तक का आभामंडल और निखारने की उनकी योजना साफ नजर आती है। इस कड़ी की नई फिल्म ‘सलाम वेंकी’ उस सिनेमा का हिस्सा है जिसमें लाइलाज बीमारियों से जूझते इंसानों के कष्ट के साथ साथ उनके चारों तरफ बसी दुनिया पर इसके चलते होने वाले असर को भांपने की कोशिश की जाती है। काम आसान नहीं है, लेकिन अच्छा काम करना आसान रहा ही कब है!
‘सलाम वेंकी’ बनाने वालों को सलाम
निर्देशक के तौर पर रेवती का फिल्मी दर्शकों के बीच काफी सम्मान है। वह दिखावे से दूर की जिंदगी जीने में यकीन करती है। निर्माता सूरज सिंह के दफ्तर में काजोल के इंटरव्यू के दौरान वह खुद ही प्रिंटर के करीब खड़े होकर अपने प्रिंट्स इकट्ठे करती दिखीं थीं। रेवती को मजबूत लीक से इतर सोचने वाले निर्माताओं से ज्यादा जरूरत ऐसे निर्माताओं की है जिनके पास पैसा है, बड़े सितारों तक पहुंच है और जो इस तरह की फिल्मों को बड़े पैमाने पर रिलीज कर सकने का माद्दा रखते हैं। ‘सलाम वेंकी’ ऐसी फिल्म नहीं है जिसमें आखिर तक कोई सस्पेंस बना रहे या कि दर्शक कुछ अप्रत्याशित देखने के इंतजार में आखिर तक बैठा रहे है। यहां कहानी फिल्म शुरू होने के साथ ही स्पष्ट हो जाती है। पहले से ज्ञात कहानियों पर बने सिनेमा की असल कसौटी यही होती है, कि वह दर्शक को इसकी भावनाओं के साथ कैसे अपने साथ बहा ले जा सकती है..! ‘सलाम वेंकी’ बस यही करने से चूक जाती है।
किताबी कहानी पर चलता कैमरा
रेवती को उत्तर भारत का ज्यादा भान नहीं है। उनकी मुख्य कलाकार काजोल भी ऐसी पृष्ठभूमि से आती हैं, जहां उत्तर भारतीय या कहें कि हिंदीभाषी दर्शकों की रुचि पर ज्यादा चर्चा नहीं होती। फिल्म ‘सलाम वेंकी’ की असल रीढ़ इसकी पटकथा को होना था। रेवती अपनी टीम चुनने के मामले में भी चूकी हैं। श्रीकांत मूर्ति की किताब ‘द लास्ट हुर्राह’ पर बनी इस फिल्म को सिनेमा के उस हिसाब से लिखा नहीं गया है, जिसका गुणाभाग हिंदी भाषी दर्शकों को समझ आता है। परदे पर जो कुछ घट रहा है, उसे अगर बोलकर बताने की जरूरत पड़े तो फिल्म का ग्राफ वहीं नीचे गिरने लगता है। रेवती के सामने चुनौती ये भी रही कि जिस बीमारी की बात यहां की जा रही है, उसके बारे में आम दर्शकों को ज्यादा पता भी नहीं है और उनसे उनका संवेदनात्मक संबंध बनाना भी आसान नहीं है। लिहाजा उन्हें अपनी कहानी की सारी परतें शुरू में ही खोल देनी पड़ीं और फिर उसे समेटने में आमिर खान की मौजूदगी भी मदद नहीं कर पाती है।
विशाल जेठवा की काबिलियत से बड़ा किरदार
किसी इंसान की मांसपेशियों के लगातार खराब होते जाने की बीमारी ऐसी है, जिसका कहते हैं कि कोई इलाज नहीं है। इस बीमारी से प्रभावित युवा की भूमिका विशाल जेठवा को मिली है। कभी कृष्ण, कभी अकबर तो कभी बाली बनकर छोटे परदे के दर्शकों का मनोरंजन करते रहे अभिनेता विशाल जेठवा के बारे में खबरें रही हैं कि वह सलमान खान के साथ फिल्म ‘टाइगर 3’ में भी नजर आने वाले हैं। ‘मर्दानी 2’ में उनका खतरनाक रूप दर्शक देख ही चुके हैं। फिल्म ‘सलाम वेंकी’ इन दोनों फिल्मों के बीच बतौर अभिनेता कुछ अलग करने की उनकी अच्छी कोशिश है। बस दिक्कत ये है कि वह अभिनय करते हैं तो अभिनय करते नजर आते हैं। किरदार की खाल ओढ़ लेने की कला अभी उनसे थोड़ी सी दूरी पर है। हां, काजोल के साथ परदे पर अपना स्थान सुरक्षित रखने में वह जरूर कामयाब रहे हैं।
बाकी है अभी काजोल का असली करिश्मा
और, अब बात काजोल की। फिल्म ‘सलाम वेंकी’ को देखने का रेवती के नाम के बाद जो दूसरा बड़ा आकर्षण है, वह हैं काजोल। प्रियंका बनर्जी और रेणुका शहाणे के बाद रेवती तीसरी ऐसी निर्देशक हैं जिनके साथ उनकी ये लगातार तीसरी फिल्म बनी है। काजोल को अब जरूरत है ऐसे निर्देशकों की जो उनके लिए ‘तुम्हारी सुलु’ या ‘डर्टी पिक्चर’ जैसा ऐसा कुछ सोच पाएं जिसमें काजोल को अपनी अभिनय क्षमता का विस्तार करने का मौका मिले। उनका अभिनय विस्तार उनकी उम्र के अनुसार परिपक्व तो हो रहा है, लेकिन किरदारों में दोहराव से बचने के लिए उन्हें अब कुछ ऐसा करने की जरूरत है जो ‘सिमरन’ के दिनों के उनके दीवानों को भी रास आए। इस फिल्म में भी काजोल ने शानदार अभिनय किया है लेकिन ये अभिनय चूंकि एक ऐसी पटकथा पर आधारित है, जिसमें उनके किरदार के पास पंख फैलाकर अपनी अलग उड़ान भरने जैसा कुछ है ही नहीं, तो उनका आसमान भी सीमित ही रहता है।
हम होंगे कामयाब एक दिन
निर्देशक रेवती ने ‘सलाम वेंकी’ में अपने परिचित तमाम नगीनों से फिल्म को सजाया है। आमिर खान का होना न होना फिल्म के लिए फर्क नहीं डालता है। लेकिन, परदे पर कमल सदाना को देखना जरूर चौंकाता है। वह काजोल के पहले हीरो जो रहे हैं। इसके अलावा फिल्म में प्रकाश राज, राजीव खंडेलवाल, प्रियमणि और राहुल बोस जब जब परदे पर आते हैं, उनके प्रशंसकों को उनसे उम्मीद बंधती है। ये चारों सितारे अपनी अपनी तरफ से कोशिश भी पूरी करते हैं, लेकिन फिल्म का विषय ऐसा है जो आपके उदास होते मन को इन सितारों की मौजूदगी से भी उल्लसित होने नहीं देता।
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